विलय किसे कहते हैं? भारत में बैंको की स्थापना और उनका विलय
आज भारत के साथ साथ पुरे विश्व में बैंक सबकी जरुरत बन चूका है।
वेतन, व्यापार या किसी भी कार्य से मिलने वाल धन का रख रखाव बैंको
पर या वित्तीय संस्था पर होता है। इसीलिए हर व्यक्ति के लिए बैंक पर
खाता होना अनिवार्य हो गया है। वर्त्तमान समय में बैंक खाते के द्वारा ही
व्यक्ति अपने रुपए पैसों का लेखा जोखा रखता है।
भारत में अंग्रेजों के आगमन से पहले कागजी रूपये का चलन नही था
और उस समय सोना चांदी के सिक्के हुआ करते थे जिसे घरों पर ही
संग्रहित करते थे और अपनी जरुरत के अनुसार इस्तेमाल करते थे।
अंग्रेजों के आने के बाद भारत में पहली बार 1770 में “बैंक ऑफ़ हिंदुस्तान”
नमक बैंक की स्थापना हुई लेकिन यह बैंक 1832 में बंद हो गया था।
उसके पश्चात “जनरल बैंक ऑफ़ इंडिया” नमक बैंक की स्थापना
1786 पर हुआ। यह बैंक भी सिर्फ पांच साल तक ही चला और फिर 1791 में बंद हो गया।
बिर्टिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उन्नीसवी शताब्दी में तीन बैंको की शुरुआत की थी जिनका नाम है
- बैंक ऑफ़ बंगाल – इसकी स्थापना 2 जून 1806 में हुई
- Bank ऑफ़ बॉम्बे – इसकी स्थापना 15 अप्रैल 1840 में हुई
- बैंक ऑफ़ मद्रास – इसकी स्थापना 1 जुलाई 1843 में हुई
लेकिन बैंको की स्थापना का यह सिलसिला यही नही रुका और यह तीनों बैंको का भी विलय एक नया बैंक “द इम्पीरियल बैंक ऑफ़ इंडिया” में कर दिया गया जिसकी स्थापना 27 जनवरी 1921 को हुआ था। इसके बाद इस इम्पीरियल बैंक को भी विलय कर एक नया बैंक की स्थापना 1 जुलाई 1955 को किया गया जिसका नाम भारतीय स्टेट बैंक (स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया) रखा गया और आज यह भारत देश की सबसे बड़ी बैंक के रूप में अपना पहचान चूका हैं।
बैंकों का विलय का दौर यही नही रुका और आज भी लगातार जारी है। गुजरते वक्त के साथ आजाद भारत में भारतीय स्टेट बैंक के अलावा ओर भी कोई सारे बैंको की स्थापना हुई और फिर धीरे धीरे बैंको का विलय हो रहा है। जहां पहले 27 सरकारी बैंक हुआ करते थे लेकिन विलय के बाद यह संख्या घटकर अब 12 तक सिमट गया है।
विलय किसे कहते हैं – क्यों और कैसे किया जाता है बैंको का विलय?
कार्यक्षमता, इक्विटी का बेहतर उपयोग और तकनिकी प्लेटफार्म के आधार पर बैंको का विलय किया जाता हैं। इसका मकसद बैंको के सुधार और उनकी बिगड़ी हालत को दुरुस्त करना होता है। विलय के दौरान यह भी ध्यान रखा जाता है की किसी भी तरह का कोई बाधा उत्पन्न न हो और खाता धारकों के खाते से फायदे मिलते रहे। विलय के पश्चात् सरकारी बैंको की संख्या कम होने से लगने वाली लागत पर कमी आएगी। बैंको की मुनाफा का एक बड़ा हिस्सा बैंको के कर्मचारी और दूसरी लागत में खर्च हो जाता है। विलय होने पर कोई सारे खर्चे पर कमी आएगी। इसके अलावा NPA खाते पर निय्तंत्रण कर ऋण की वसूली करने में आसानी होगी।
वित्त मंत्रालय से सैद्धांतिक मंजूरी के बाद बैंको के बोर्ड में शामिल सदस्य विलय की योजना करते है। इस योजना पर केबिनेट की मुहर लगती है और इस तरह रिज़र्व बैंक, सिक्यूरिटी एक्सचेंज बोर्ड ऑफ़ इंडिया-SEBI (शेयर मार्केट की नियामक संस्था) जैसे रेगुलातोर्स से मंजूरी मिलने के बाद विलय का रास्ता साफ हो जाता है। सभी ओपराचिक्ताएं पूरी हो जाने के बाद विलय पर मुहर लग जाता है और बैंको का विलय हो जाता है।
अप्रैल 1, 2020 भारत में बैंको का सबसे बड़ा विलय देखा गया है। इसमें 10 बैंको का विलय हुआ है और 27 सरकारी बैंको से घटकर अब 12 हो गए है-
- भारतीय स्टेट बैंक
- पंजाब नेशनल बैंक (+यूनाइटेड बैंक ऑफ़ इंडिया + ओरिएण्टल बैंक ऑफ़ कॉमर्स)
- बैंक ऑफ़ बड़ोदा
- पंजाब एंड सिंध बैंक
- बैंक ऑफ़ इंडिया (+ आंध्र बैंक + कारपोरेशन बैंक)
- केनरा बैंक (+ सिंडिकेट बैंक)
- इंडियन बैंक (+ इलाहाबाद बैंक)
- यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया
- सेंट्रल बैंक ऑफ़ इंडिया
- इंडियन ओवेर्सीस बैंक
- बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र
- यूको बैंक
विलय किसे कहते हैं – भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना 1 अप्रैल 1935 को हुई थी। भारत में सभी बैंको का संचालन भारतीय रिज़र्व बैंक के निर्देशुनार होता है। समय समय पर भारतीय रिज़र्व बैंक जो भी दिशा निर्देश जारी करता है, सभी बैंको को उनका पालन करना पड़ता है।
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